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दीपावली पर्व

पाठशाला में दीपावली का पर्व बड़े धूमधाम से मनया गया | कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन दिवाली का त्योहार मनाया जाता है | पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान राम रावण का वध कर और 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या वापस लौटे थे | उनके आने की खुशी में अयोध्यावासियों ने पूरी नगरी में घी के दीपक जलाकर रोशनी की थी | पालन पाठशाला में भी छात्र छात्राओं ने अपने राम जी सीता जी और लक्ष्मण जी का पुष्प वर्षा का स्वागत वंदन किया एवं अपने आराध्य की पूजा अर्चना की | आज का यह पर्व प्यारे बाल मनुहारों के साथ बड़ी मस्ती और धूम धाम से हमारी पाठशाला में मनाया गया | दिवाली के दिन गणेश जी और मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है. मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा अर्चना करने से मां लक्ष्मी घर में वास करती हैं और जीवनभर भक्तों पर कृपा बरसाती हैं |

वैसे तो दिवाली को हिन्दुओं का पर्व ही माना जाता है मगर भारत में इसे लगभग सभी धर्म एवं सम्प्रदायों के लोग मनाते रहे हैं, 2 शब्दों से मिलकर बने दीपावली शब्द का अर्थ होता है दीपो की पंक्ति अथवा कतार क्योंकि इस दिन बड़ी संख्या में घी के दिये जलाकर घर की चौखट या मुख्य द्वार पर एक लाइन में सजाया जाता हैं | धन सुख सम्पति एवं एश्वर्य की प्रदाता माँ लक्ष्मी का यह पर्व माना जाता हैं.

 

समय के बदलाव के साथ साथ दिवाली को मनाने के तरीके में भी पर्याप्त बदलाब आ गया हैं | पहले इसे मनाने के लिए लोग घरों को दीयों की रोशनी से सजाते थे. मगर अब समय में काफी बदलाव आ गया हैं|  हालाँकि गाँवों में आज भी मिट्टी के बने दियों के साथ इस परम्परा को जीवित बनाए रखा हैं | इस त्यौहार को मनाने के पीछे भगवान राम से जुडी हुई एक कथा है जिनके अनुसार उनके पिता दशरथ द्वारा जब इन्हें 14 वर्ष का वनवास मिला था तो वे इसी दिन अपने वनवास की अवधि पूर्ण कर, रावण का अंत कर सीता व लक्ष्मण सहित अयोध्या लौटे थे |

 

अयोध्या की जनता ने प्रभु श्रीराम का घी के दिए जलाकर स्वागत किया | इस तरह से अमावस्या की अंधकार भरी रात्री में चारो ओर दीपकों की रोशनी से सारी अयोध्या नगरी जगमगा उठी थी | तब से आज तक हम इस प्र्काशोउत्स्व को हर साल मनाते आ रहे हैं

वही दीपावली का पहला दिन धनतेरस मनाने के पीछे की कथा के अनुसार इस दिन समुद्रमंथन से माँ लक्ष्मी का जन्म हुआ था, इसी कारण उनकी पूजा की जाती हैं | साथ ही इस दिन आयुर्वेद के ज्ञाता भगवान धन्वन्तरी का जन्म भी इसी दिन हुआ था | इस कारन इन्हें के नाम पर इस पर्व को धन तेरस अथवा धन त्रयोदशी के रूप में मनाया जाता हैं | यह पर्व ऐसे समय में मनाया जाता है जब किसान अपनी खरीफ की फसल को प्राप्त कर चुके होते हैं. चार महीनों की मेहनत के बाद फसल कटाई के बाद उनके पास हर्ष और उल्लास का काफी समय रहता हैं | जिन्हें वो इस तरह के त्योहारों के द्वारा पूर्ण करते हैं. लोग अपने घरो को साफ़ सुथरा बनाते है नयें नयें कपड़े खरीदते है. धनतेरस के दिन बर्तन सोने चादी के आभूषण आदि की खरीद भी की जाती हैं. इस तरह से सभी जगहों पर हंसी ख़ुशी का साफ़ सुथरा माहौल दिवाली का त्योहार ला देता हैं | दिवाली का बड़ा धार्मिक महत्व हैं. यह वर्षा ऋतू की समाप्ति एवं सर्द ऋतु के आगमन के समय मनाया जाता हैं. इस समय तक वातावरण कीट पतंगो से भर जाता हैं| कई हानिकारण जीवाणु कीटाणु बरसात कीचड़ तथा घास फूस के कारण जन्म ले लेते हैं|

घरों के आसपास घास झाड़ियाँ उग जाती है जो मच्छरों को प्रश्रय देती हैं. इस तरह से इस पर्व पर सफाई करने से पूरा माहौल साफ़ सुथरा हो जाता है तथा बीमारियाँ फैलने की संभावना कम हो जाती हैं | दीपक की रोशनी से भी सैकड़ो हानिकारण कीट पतंग मर जाते हैं इस तरह से दीपावली के समय एक बड़ा स्वच्छता अभियान अनायास ही चल पड़ता हैं. जो हमारे पर्यावरण को साफ़ सुथरा रखने में हमारी मदद भी करता हैं |

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